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अध॒ ग्मन्ता॒ नहु॑षो॒ हवं॑ सू॒रेः श्रोता॑ राजानो अ॒मृत॑स्य मन्द्राः। न॒भो॒जुवो॒ यन्नि॑र॒वस्य॒ राध॒: प्रश॑स्तये महि॒ना रथ॑वते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

adha gmantā nahuṣo havaṁ sūreḥ śrotā rājāno amṛtasya mandrāḥ | nabhojuvo yan niravasya rādhaḥ praśastaye mahinā rathavate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अध॑। ग्मन्त॑। नहु॑षः॑। हव॑म्। सू॒रेः। श्रोत॑। रा॒जा॒नः॒। अ॒मृत॑स्य। म॒न्द्राः॒। न॒भः॒ऽजुवः॑। यत्। नि॒र॒वस्य॑। राधः॑। प्रऽश॑स्तये। म॒हि॒ना। रथ॑ऽवते ॥ १.१२२.११

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:122» मन्त्र:11 | अष्टक:2» अध्याय:1» वर्ग:3» मन्त्र:1 | मण्डल:1» अनुवाक:18» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उपदेश करनेवाले का कर्त्तव्य अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मन्द्राः) आनन्द करानेवाले (राजानः) प्रकाशमान सज्जनो ! तुम (अमृतस्य) आत्मरूप से मरण धर्म रहित (सूरेः) समस्त विद्याओं को जाननेवाले (नहुषः) विद्वान् जन के (हवम्) उपदेश को (श्रोत) सुनो (नभोजुवः) विमान आदि से आकाश में गमन करते हुए तुम (यत्) जो (निरवस्य) रक्षा हीन का (राधः) धन है उसको (ग्मन्त) प्राप्त होओ (अध) उसके अनन्तर (महिना) बड़प्पन से (प्रशस्तये) प्रशंसित (रथवते) बहुत रथवाले को धन देओ ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - जो परमेश्वर, परम विद्वान् और अपने आत्मा के सकाश से विरोधी नहीं होते और उनके उपदेशों का ग्रहण करें, वे विद्याओं को प्राप्त हुए महाशय होते हैं ॥ ११ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरुपदेशककृत्यमाह ।

अन्वय:

हे मन्द्रा राजानो यूयममृतस्य सूरेर्नहुषो हवं श्रोत नभोजुवो यूयं यन्निरवस्य राधस्तद्ग्मन्ताध महिना प्रशस्तये रथवते राधो दत्त ॥ ११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अध) आनन्तर्ये (ग्मन्त) प्राप्नुत। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नहुषः) विदुषो नरस्य (हवम्) उपदेशाख्यं शब्दम् (सूरेः) सर्वविद्याविदः (श्रोत) शृणुत। अत्र विकरणलुक् द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घश्च। (राजानः) राजमानाः (अमृतस्य) अविनाशिनः (मन्द्राः) आह्लादयितारः (नभोजुवः) विमानादिना नभसि गच्छन्त (यत्) (निरवस्य) निर्गतोऽवो रक्षणं यस्य (राधः) धनम् (प्रशस्तये) प्रशस्ताय (महिना) महत्त्वेन (रथवते) बहवो रथा विद्यन्ते यस्य तस्मै ॥ ११ ॥
भावार्थभाषाः - ये परमेश्वरस्य परमविदुषः स्वात्मनश्च सकाशादविरोधिनस्तदुपदेशांश्च गृह्णीयुस्ते प्राप्तविद्या महाशया जायन्ते ॥ ११ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे, परमेश्वर, अत्यंत विद्वान व आपल्या आत्म्याच्या विरोधी नसतात व त्यांचा उपदेश ग्रहण करतात ते विद्या प्राप्त करून श्रेष्ठ बनतात. ॥ ११ ॥